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बिहार चुनाव: नई उड़ान भरने को आतुर है सीमांचल की राजनीति, इन मुद्दों को लेकर हो रहा घमासान

कटिहार/पूर्णिया: बिहार विधानसभा चुनाव की आहट तेज़ होते ही सीमांचल की राजनीति में नई हलचल देखने को मिल रही है। सीमांचल — यानी किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया का इलाका — इस बार राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। यहां की जनता विकास, शिक्षा, रोज़गार और बाढ़ जैसे मुद्दों पर नई दिशा की तलाश में है।

बीते कई दशकों से सीमांचल को “पिछड़ेपन का प्रतीक” कहा जाता रहा है। मगर अब यहां के युवा बदलाव की राह पर हैं। राजनीतिक दलों को यह संदेश साफ मिल चुका है कि अब केवल जातीय या धार्मिक समीकरण से बात नहीं बनेगी। जनता अब सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योग जैसे ठोस मुद्दों पर जवाब मांग रही है।

इस बार भाजपा, जदयू, राजद और एआईएमआईएम समेत कई दल सीमांचल में अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं। भाजपा जहां केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का हवाला देकर विकास की बात कर रही है, वहीं राजद सीमांचल में रोजगार और सामाजिक न्याय का मुद्दा उठा रही है। दूसरी ओर, ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी अपने पुराने गढ़ किशनगंज और आसपास के क्षेत्रों में सक्रिय हो गई है।

स्थानीय लोगों के मुताबिक, सीमांचल में अब सबसे बड़ा सवाल बाढ़ नियंत्रण और शिक्षा व्यवस्था का है। हर साल कोसी और महानंदा नदियों की तबाही इस इलाके के लोगों की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित करती है। इसके बावजूद अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर इस बार सीमांचल की जनता एकजुट होकर अपने मुद्दों पर वोट करती है, तो यह इलाका पूरे बिहार के सत्ता समीकरण को पलट सकता है। यहां की 24 विधानसभा सीटें किसी भी दल के लिए निर्णायक साबित हो सकती हैं।

सीमांचल की राजनीति अब पुराने ढर्रे से बाहर निकलती दिख रही है। युवा नेतृत्व, शिक्षा और विकास की मांग ने इस क्षेत्र को नई पहचान देने की शुरुआत कर दी है। आने वाले बिहार चुनाव में सीमांचल सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक खिलाड़ी बनने को तैयार है। by shruti kumari

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