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लाल बहादुर शास्त्री सादगी, ईमानदारी और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक जिसके जज्बे ने दिलाई थी युद्ध में जीत

राइटर- राहुल कुमार शुक्ला

भारत माता के सच्चे सपूत और दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम आज भी सम्मान और गर्व से लिया जाता है। उनका जीवन सादगी, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल है। शास्त्री जी भले ही कद में छोटे थे, लेकिन उनके विचार और संकल्प अत्यंत ऊँचे थे। उन्होंने साबित किया कि सच्चे नेतृत्व के लिए धन, शान-शौकत या दिखावा नहीं बल्कि सत्यनिष्ठा और जनता से जुड़ाव ही सबसे बड़ी पूंजी होती है।सादगी और ईमानदारी शास्त्री जी का जीवन एक सामान्य भारतीय परिवार जैसा था। वे पद और प्रतिष्ठा के बावजूद कभी भी विलासिता की ओर नहीं झुके। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने सरकारी सुविधाओं का निजी स्वार्थ के लिए प्रयोग नहीं किया। उनका ईमानदारी भरा जीवन जनता को यह संदेश देता है कि सच्चा नेता वही है, जो अपनी बात और कर्म में पारदर्शिता रखे।

जय जवान, जय किसान भारत के इतिहास में शास्त्री जी का सबसे बड़ा योगदान उनका प्रसिद्ध नारा जय जवान, जय किसान”है। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय जब देश को एकजुट होने की आवश्यकता थी, तब शास्त्री जी ने यह नारा दिया। इसने सैनिकों को हिम्मत दी और किसानों को प्रेरणा दी कि अन्न उत्पादन बढ़ाकर देश को आत्मनिर्भर बनाएं। यह नारा आज भी भारत की आत्मा माना जाता है। 1965 का भारत-पाक युद्ध प्रधानमंत्री रहते हुए शास्त्री जी ने पाकिस्तान के साथ हुए 1965 के युद्ध में पूरे साहस और दृढ़ता से देश का नेतृत्व किया। सीमित संसाधनों के बावजूद भारतीय सेना ने अदम्य साहस दिखाया। शास्त्री जी के नेतृत्व और जनता के विश्वास ने देश को युद्ध में जीत दिलाई। इस दौरान उनका धैर्य और निर्णायक निर्णय क्षमता हर भारतीय के लिए गर्व का विषय बनी।आत्मनिर्भरता की दिशा शास्त्री जी ने देश की जनता को प्रेरित किया कि हम आत्मनिर्भर बनें।

युद्धकाल में अन्न संकट के समय उन्होंने जनता से एक दिन उपवास रखने की अपील की। जनता ने इसे दिल से स्वीकार किया और पूरा देश एकजुट होकर उनका साथ देने लगा। इससे यह सिद्ध हुआ कि जनता अपने नेता पर कितना विश्वास करती है। किसान और श्रमिकों के प्रति संवेदनशीलता शास्त्री जी ने हमेशा किसानों और श्रमिकों की समस्याओं को समझा। उनका मानना था कि अगर देश का किसान और जवान मजबूत है, तो देश भी मजबूत रहेगा। उन्होंने हरित क्रांति को बढ़ावा दिया, जिससे भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सका। ताशकंद समझौता 1965 के युद्ध के बाद शांति स्थापित करने के लिए उन्होंने सोवियत संघ में ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह उनकी कूटनीतिक समझ और शांति प्रिय स्वभाव को दर्शाता है। हालांकि समझौते के तुरंत बाद उनकी असामयिक मृत्यु हो गई, लेकिन उन्होंने दुनिया को दिखाया कि भारत शांति और आत्मसम्मान दोनों के साथ खड़ा है।

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा नेता वही है जो सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति को सर्वोपरि मानता हो। उनका नेतृत्व कठिन समय में भी देश के लिए प्रकाशस्तंभ बना। जय जवान, जय किसान का मंत्र आज भी हर भारतीय के हृदय में गूंजता है। शास्त्री जी के योगदान पर न केवल देश, बल्कि पूरी दुनिया गर्व करती है।

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