
7 सितंबर से श्राद्ध की शुरुआत हो चुकी है। 21 सितंबर को सर्व अमावस्या तक पितरों के नाम हर दिन तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म किए जाएंगे। परंपरागत मान्यता है कि श्राद्ध भोजन का पहला अन्न कौवे को दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि धार्मिक दृष्टिकोण से कौवा पितृ-दूत माना जाता है और इसे भोजन न कराना पूर्वजों को भूखा छोड़ने के समान हो सकता है। आज-कल खासकर शहरों में कौवे मिलना मुश्किल हो गया है। इस स्थिति में शास्त्रों और परंपरा में कुछ वैकल्पिक उपाय बताए गए हैं ताकि श्राद्ध कर्म में पूर्वजों को तृप्ति हो सके। कौवे की अनुपस्थिति में गाय या कुत्ते को भी वह भोजन कराया जा सकता है जो श्राद्ध में कौवे को दिया जाता। इस तरह की व्यवस्था “पंचबलि भोग” कहलाती है, जहाँ गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देवताएँ इस भोग में शामिल होते हैं।

एक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में जयंत ने कौवे का रूप धारण किया था। बाद में जब उसने माता सीता को चोंच मार दी, तो प्रभु राम द्वारा उसे एक तिनके से मारा गया। माफी मांगने पर राम ने उसे वरदान दिया कि अब से कौवे के माध्यम से पूर्वजों की आत्माएँ मोक्ष पाएँगी। श्राद्ध पर करने वाले अहम उपाय।

– पितृ पक्ष के समय स्नान करने के बाद गंगाजल या फिर दुध में काले तिल और बेलपत्र मिलाकर भगवान शिव को अर्पित करें। ऐसा करने से आपको पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
– अगर आप अपने पितरों को खुश करना चाहते हैं तो पितृ पक्ष के दौरान काले तिल का दान जरूर करें। ऐसा करने से आपके पितरों का आशीर्वाद मिल सकता है।
– इन सबके अलावा पितृ पक्ष के दौरान पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है। अतः श्राद्ध पक्ष के दौरान घर में बड़े-वृद्ध की सेवा और सम्मान करें। उनका दिल न दुखाएं और न ही मान-सम्मान को ठेस पहुचाएं।
