
बिहार की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में छठ पर्व का महत्व सबसे ऊपर है। यह पर्व न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच आस्था का प्रतीक है। कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत त्रेतायुग में माता सीता ने स्वयं की थी। इसी मान्यता से जुड़ा है बिहार के मुंगेर जिले का प्रसिद्ध सीता चरण मंदिर, जहाँ आज भी भक्त दूर-दूर से आकर श्रद्धा प्रकट करते हैं।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक ग्रंथ आनंद रामायण के अनुसार, जब भगवान श्रीराम और माता सीता अयोध्या लौटे, तो माता सीता ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान सूर्य की उपासना की। यही छठ पर्व की प्रथम कथा मानी जाती है। माना जाता है कि मुंगेर के गंगा तट पर स्थित इस स्थान पर ही माता सीता ने पहला छठ व्रत किया था।
मंदिर में एक विशाल चट्टान है जिसे स्थानीय लोग “मनपथर” या सीता चरण शिला कहते हैं। इस पत्थर पर माता सीता के चरण चिह्न अंकित बताए जाते हैं। भक्तों का विश्वास है कि यहाँ पूजा करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और संतान-सुख तथा परिवार की समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
मंदिर की विशेषता
सीता चरण मंदिर गंगा नदी के बीच एक ऐसे स्थान पर स्थित है जहाँ तक पहुँचना आसान नहीं है। मंदिर का गर्भगृह वर्ष के अधिकांश समय पानी में डूबा रहता है। सिर्फ छठ पर्व या जलस्तर कम होने के समय ही मंदिर तक पहुँचा जा सकता है। यही कारण है कि यह स्थान भक्तों के लिए और भी रहस्यमय और आस्था से जुड़ा हुआ है।
छठ पर्व के दौरान यहाँ विशेष तैयारियाँ होती हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर से पानी निकालने के लिए पंपिंग सेट का उपयोग करते हैं ताकि गर्भगृह और चरण चिह्न भक्तों के दर्शन के लिए उपलब्ध हो सकें। यह नज़ारा गंगा तट पर एक अनूठे धार्मिक उत्सव का रूप ले लेता है।

हर साल की चुनौती: बाढ़ और गाद
गंगा नदी का स्वभाव उग्र है। हर वर्ष बारिश के मौसम में यह मंदिर पूरी तरह जलमग्न हो जाता है। गर्भगृह, दीवारें और चरण चिह्न कई महीनों तक गंगा के पानी और गाद के नीचे दबे रहते हैं। इससे मंदिर की संरचना को नुकसान भी पहुँचता है। दीवारों पर सीलन, कीचड़ और प्लास्टर उखड़ना आम बात है।
स्थानीय प्रशासन और श्रद्धालुओं के प्रयास से मंदिर की सफाई और मरम्मत होती रहती है। लेकिन गंगा की धाराएँ हर बार नई चुनौती खड़ी कर देती हैं। इसके बावजूद भक्तों की आस्था अटूट है और वे हर वर्ष यहाँ छठ पर्व मनाने के लिए पहुँचते हैं।
आस्था का केंद्र
सीता चरण मंदिर न सिर्फ धार्मिक मान्यता का केंद्र है बल्कि बिहार की संस्कृति और परंपरा की पहचान भी है। गंगा की लहरों में डूबता-उतराता यह मंदिर इस बात का प्रतीक है कि आस्था की ज्योति कभी बुझती नहीं, चाहे कितनी भी प्राकृतिक चुनौतियाँ क्यों न हों।
आज भी जब छठ के गीत गाए जाते हैं और गंगा की धारा पर अर्घ्य दिया जाता है, तो भक्तों को यही एहसास होता है कि वे उसी पावन स्थल पर खड़े हैं जहाँ माता सीता ने सूर्यदेव की आराधना कर इस महान पर्व की शुरुआत की थी। BY SHRURI KUMARI
